खाकी वर्दीतील दर्दी कवी
*खाकी वर्दीतील दर्दी कवी*
पुरी दुनिया जान जायेगी अब
इस खाकी वर्दी के दर्दी कवी को
अभितक थी अंजान
ऊस उभरती छबी को
लिखा है मैने भी
मासुम दिलोंके दर्द को
वतन के लिये शहीद हुए
हर वीर मर्द को
माँ कि ममता को भी सजाया है
मैने अपनी कलम से
पिया तरसती मिलन को
जैसे अपने बलम से
लिखा है मैने भी
खाकी वर्दी कि यातना को
देश के लिये लढ सके
उस युवा चेतना को
कभी लिखी है मैने कर्जं के निचे दबे
किसान कि जज़्बात को
जो चढ गया सुली छोडके
नंन्ही परियो के हात को
कभी कलम से निकली है मेरे
बालकविता कि बरसात
और दिल मी छुपे ऊन
हर एक रीश्ते कि मन कि बात
अजय कहता था कभी
मंजिल मेरी आखोमें और
जुनुन मेरी रग रग में होगा
कलम मेरी तलवार और
दिलमे झाशी का प्यार होगा
हर एक दिल में गुंजेगी अब
मेरी लिखी रचनाए
पढके उनको जो
हर एक जान सुकून पाए
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
PSI अजय दत्तात्रय चव्हाण
खाकी वर्दीतील दर्दी कवी....
टिप्पण्या