खाकी वर्दी के दर्दी कवी


खाकी वर्दी के दर्दी कवी

 पुरी दुनिया जान जायेगी अब 
 इस खाकी वर्दी के दर्दी कवी को 
अभितक थी अंजान 
ऊस  उभरती छबी को 

लिखा है मैने भी 

मासुम दिलोंके दर्द को 
वतन के लिये शहिद हुऐ 
ऊस वीर मर्द को

 माँ कि ममता को भी सजाया है 

मैने अपनी कलम से 
पिया तरसती मिलन को 
जैसे अपने बलम से 

लिखी है मैने भी 

खाकी वर्दी कि यातना को 
देश के लिये लढ सके
 ऊस युवा चेतना को

 कभी लिखी है मैने कर्जं के निचे दबे

 किसान कि जज़्बात को
 जो चढ गया सुली छोडके 
नंन्ही परियो के हात को

कभी कलम से निकली है मेरे 

बालकविता कि बरसात
 और दिल मी छुपे ऊन
 हर एक रीश्ते कि मन कि बात 

अजय हि कह गया था कभी 
मंजिल मेरी आखोमें 
और जुनुन मेरे रग रग में होगा
 कलम मेरी तलवार और 
दिलमे झाशी का प्यार होगा 

हर एक दिल में गुंजेगी अब 

मेरी लिखी रचनाए 
पढके उनको जो 
हर एक जान सुकून पाए 

अजय दत्तात्रय चव्हाण 

उर्फ (राहुल) 
खाकी वर्दीतील दर्दी कवी....
8424043233
महाराष्ट्र मुंबई

टिप्पण्या

Nagesh म्हणाले…
1 नंबर सर
Unknown म्हणाले…
दादा तू कविता कुठल्या पण भाषा मध्ये घडावं ते नेहमी अप्रतिम असतात
khakivarditildardikavi म्हणाले…
मनापासून धन्यवाद

या ब्लॉगवरील लोकप्रिय पोस्ट

सेवानिवृत्ती समारंभ

दुनियेची रीत