पच्चीस जुलाई
*पच्चीस जुलाई*
शायद उस दिन भी
यारो बुधवार ही था
पूर्णिमा की रात पे
वो चाँद सवार था
जब माँ ने मेरी
पकड़ी थी कलाई
याद आता है मुझे
वो पच्चीस जुलाई
पैतीस वे साल में
अब हो रहा है पदार्पण
फिरसे दिखे वो मासूम चेहरा
वो दिखा दे कोई दर्पण
वो चांदनी रात और
चाँद का बलून चाहिए
सो जाऊ माँ के आंचल में
वो लोरी की धुन चाहिए
जन्म और मृत्यु के
बीच की ये लड़ाई
दिलोंमें जरूर रहेंगे आपके
मेरे कलम के अक्षर ढाई
आज जन्मदिन मेरा है तो
ए आसमान भी जरूर बरसेगा
फिर इसी दिन बुधवार आने को
वो काल भी जरूर तरसेगा
✍✍✍✍✍
अजय द.चव्हाण
उर्फ (राहुल )
खाकी वर्दीवाला दर्दी कवी
मो. 8424043233
टिप्पण्या