यक़ीन रखों खुदपर
*यकीन रखों खुद पर*
मुझे ठीक ढंग से हिंदी
आती भी नहीं बोलने
फिर भी ये लब्जोंके कारीगर
न जाने कहासे आते मिलने
कॉमर्स का छात्र हुँ
हिंदी से न था वास्ता
फिर भी एक एक लब्ज
दिलो मे आपके बसता
दसवीं में था जब
मैंने हिंदी थी पढ़ी
कैसी आयी जिंदगी में
फिर इतनी सुहानी घड़ी
कोशिश करता रहता हुँ
कभी हार नहीं मानता
मंजिल मेरी ही होगी
ये जज्बा मेरा जानता
अब भी हिंदी बोलते बोलते
कभी कभी लड़खड़ाता हु मैं
लिखने के जुनून की रफ्तार को
फिर दुगने से बढ़ाता हु मैं
इतनाही बताना है आपको
कुछ भी नही है नामुमकिन
सिर्फ खुद पर ही खुद का
दिल जान से हो यकीन
✍✍✍✍✍✍
अजय दत्तात्रय चव्हाण
उर्फ(राहुल)
खाकी वर्दीवाला दर्दी कवी
मो.8424043233
टिप्पण्या